बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
नैतिक प्रत्यय के रूप में 'कर्म के सिद्धान्त का विशेष स्थान है। प्राचीन भारतीय दर्शन नीतिशास्त्र में 'कर्म के सिद्धान्त को विशेष स्थान दिया गया है। कर्म के सिद्धान्त का सम्बन्ध पुनर्जन्म एवं भाग्यवाद आदि सिद्धान्तों से भी है। कर्म के सिद्धान्त में कर्म की धारणा सबसे मुख्य एवं प्रधान है।
कर्म का अर्थ क्या है? कर्म का अर्थ यह है कि सकल अस्तित्व एवं विश्व ऊर्जा की क्रिया है। ऊर्जा की एक प्रक्रिया द्वारा विश्व का अस्तित्व है। विश्व का अस्तित्व एक अविच्छिन्न श्रृंखला है, जिसकी अनेक कड़ियाँ कारण एवं परिणाम के पारस्परिक सम्बन्ध द्वारा सम्बद्ध हैं। योगीराज श्री अरविन्द ने इस तथ्य को इन शब्दों में प्रस्तुत किया है “वर्तमान कर्म वैसे ही भूतकाल के कर्म का परिणाम होता है, जैसे भावी कर्म वर्तमान कर्म का परिणाम होगा, सारे कारण ऊर्जा की क्रिया हैं और सारे परिणाम भी ऊर्जा की क्रिया हैं। इस प्रकार कारण रूप में व्यक्त की जाने वाली ऊर्जा की प्रकृति के अनुरूप ही उस ऊर्जा की प्रकृति होगी जो फलस्वरूप में प्रकट होती है। इसी तथ्य को यूँ भी कहा जा सकता है कि मनुष्य जैसे कर्म करेगा वैसे ही उसे फल प्राप्त होंगे। अच्छे एवं शुभ कर्मों का परिणाम शुभ होगा, अशुभ कर्मों का फल अशुभ एवं कष्टदायक होगा। इस विधान को प्रायः गणितीय रूप दिया जाता है। सामान्य रूप से माना जाता है कि कोई व्यक्ति जितने शुभ कर्म या अशुभ कर्म करता है उसी अनुपात में उसे परिणाम रूप में पुरस्कार या दण्ड को भोगना पड़ता है। जीवन की अविच्छिन्नता के कारण एक जन्म के कर्मों के फल दूसरे जन्म में भी प्राप्त किये जा सकते हैं। मनुष्य का वर्तमान जीवन उसके अतीत के कर्मों का परिणाम है और उसके वर्तमान जीवन के कर्म उसके भविष्य के जीवन को निर्धारित करते हैं। कर्म के सिद्धान्त का यह रूप अपनी सीमा के अन्दर पूर्णतया युक्ति युक्त एवं आपत्तिरहित है और कर्म के इस विधान को एक तथ्य के रूप में विश्वयन्त्र के अंग के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, परन्तु वास्तव में हमारा विश्व अपने स्वभाव में पूर्णतया यांत्रिक नहीं है। अतः कर्म के इस यान्त्रिक विधान को विश्व के जीवन सम्बन्धी क्रियाओं में एकमात्र और निरपेक्ष नियामक के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
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- प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
- प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
- प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
- प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
- प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
- प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
- प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
- प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
- प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
- प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
- प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
- प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
- प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
- प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
- प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
- प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
- प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
- प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
- प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
- प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
- प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
- प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
- प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
- प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?